Monday, January 25, 2016

भगवान शिव की पूजा में क्यों वर्जित है शंख

भगवान शिव की पूजा में क्यों वर्जित है शंख
पुरातन कथा के अनुसार एक समय श्री राधा रानी गोलोक धाम से कहीं बाहर गई हुई थी । भगवान श्री कृष्ण अपनी सखी विरजा के साथ विहार कर रहे थे । संयोगवश उसी समय श्री राधा रानी वहां आ गई । सखी विरजा को अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण के साथ देख कर श्री राधा रानी को बहुत क्रोध आया । क्रोध में उन्होंने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिससे विरजा को बहुत लज्जा महसूस हुई । लज्जावश विरजा ने नदी का रूप धारण कर लिया और वह नदी बनकर बहने लगी । श्री राधा रानी के क्रोध भरे शब्दों को सुन कर भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को बहुत बुरा लगा उन्होंने श्री राधा रानी से ऊंचे स्वर में बात की। जिससे क्रोधित श्री राधा रानी ने सुदामा को दानव बनने का श्राप दे दिया ।
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आवेश में आए सुदामा ने भी हित-अहित का विचार किए बिना श्री राधा रानी को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया । श्री राधा रानी के श्राप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना । दंभ के पुत्र शंखचूर का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। यह अपने बल के अवेशष में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा और साथ ही सभी साधु-संतों को सताने लगा । साधु-संतों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया । शंखचूर श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी का परम प्रिय भक्त था । भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया इसलिए विष्णु एवं अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है ।
भगवान विष्णु को शंख इतना प्रिय है कि शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन भगवान शिव की पूजा में शंख का न तो प्रयोग होता है और न ही जल दिया जाता है और न भगवान शिव की पूजा में शंख बजाया जाता है क्योंकि भगवान शिव ने शंखचूर का वध किया था इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है ।
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