Monday, January 25, 2016

लहसुनिया रत्न धारण करने कि विधि, लहसुनिया केतु रत्न है, लहसुनिया की पहचान

लहसुनिया रत्न धारण करने कि विधि-
लहसुनिया केतु रत्न है। उपरत्न टाइगर स्टोन है। जब किसी जातक की कुंडली में केतु १, ४, ५, ९ , ११ वे भाव में उच्छ का होकर बेठा हो या उच्छ ग्रहों पर द्रष्टिया डाल रहा हो तभी जातक को लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिए। तब यह रत्न शुभ प्रभाव देता है। गोमेद एवम लहसुनिया अन्य रत्नों के साथ धारण नही करना चाहिए। जैसे मानिक , मूंगा , पुखराज , मोती , नीलम के साथ धारण करने से पितृ दोष में अनिष्ठ प्रभाव आरम्भ हो जाते है एवम नेष्ठ फल प्रदान करने लगता है। जैसे अवोंनती होना , ब्लेम लग्न , वेतन ब्रद्धि रुक जाना , कोर्ट कचेरी में फस जाना , शत्रुओ की बढोतरी होना , पति पत्नी में तलाक की स्तिथि बन जाना , अचानक दुर्घटना करवाना , चोरी एवम चरित्र का पतित होना, दिवालिया होना आदि लक्छन है.
केतु के रोग की उत्पत्ति :- केतु के बक्री होने पर या फिर नीच के हो जाने पर
केतु कई प्रकार के रोग भी देता है।
जैसे -
१. कानो से कम सुनाई देना,
२. रिश्तेदारो द्वारा विरोध उत्पन्न होना,
३ - कन्धा अवम कमर जोड़ो में दर्द होना,
४- मूत्राशय , जयेन्द्रि रोग अथवा यूरिन इन्फेक्शन,
५ . जरायु का टेढ़ा हो जाना अथवा अनियमित माहवारी (केंसर जैसे लक्चन उत्पन्न करता है.
६. अंडकोष में सुजन आजाना और बबाशीर (अर्श रोग) आदि.

श्रेष्ठ लहसुनिया की पहचान-
श्रेष्ठ लहसुनिया हिलाने पर उसकी पट्टी घुमती है। जैसे बिल्ली की आँख का रेटीना रात में चमकती है वैसे ही लहसुनिया पर बनी धरिया चमकती है। एक धारी वाली लहसुनिया सबसे श्रेष्ठ मानी गली है।
लहसुनिया के दोष-
१. लहसुनिया खंडित नही होना चाहिए। खंडित लहसुनिया धन एवम कीर्ति का नाश करता है।
२. दाग दार लहसुनिया अकाल मृत्यु का घोतक होता है लहसुनिया पर किसी भी अन्य प्रकार के दाग नही होना चाहिए।
३. लहसुनिया दुरंगी या चपटी नही होना चाहिए। यह अशुभ ब्रद्धि करती है,
४. खुनी लहसुनिया या विकृत आकृति वाली लहसुनिया रोग और शोक प्रदान करती है।
५. लहसुनिया अंधी नही होनी चाहिए।
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