Tuesday, January 26, 2016

विष्णु शालिग्राम पूजा करने की नियम और विधि, श्री विष्णु शालिग्राम शिला, तुलसी की कथा

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शालिग्राम भगवान विष्णु के प्रतिक माना जाता है! जैसे भगवान शिव को शिवलिङ्ग के रुप मे पुजन किया जाता है ओहिसे हि भगवान सालिग्राम को भगवान विष्णु के रुप मे पुजा किया जाता है !शालिग्राम खासकर सम्पूर्ण हिन्दु वैष्णव भक्तो के घर मे और विष्णु भगवान,कृष्ण भगवान के मन्दिर मे प्राण प्रतिष्ठा सहित दैनिक पुजा किया जाता है !शालिग्राम पुजा के समय येदि किसिने भगवान शालिग्रमा शिला(मूर्ति) को तुलसी के पत्ते चढाय तो भगवान नारायण(बिष्णु) शीघ्र हि ख़ुश होते है !
विष्णु का पूजन विशेष पत्थर के रूप में भी होता है जिसे शालिग्राम कहा जाता है। यह काले रंग का और चिकना पत्थर होता है। जिसे भगवान विष्णु का साक्षात स्वरूप माना जाता है। शालिग्राम के पत्थर नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी में पाए जाते हैं। गंडकी नदी को तुलसी का ही रूप माना जाता है। कैसे भगवान विष्णु बने शालिग्राम क्यों तुलसी ने लिया गंडकी नदी का रूप जानने के लिए पढ़ें पौराणिक अख्यान
पुरातन कथा के अनुसार तुलसी दिव्य पुरूष 'शंखचूड़' की निष्ठावान पत्नी वृन्दा थी। भगवान विष्णु ने छल से उसका सतित्व भंग किया था। अत: उसने भगवान काे पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इस तरह भगवान शालीग्राम रूप में परिवर्तित हो गए। वृन्दा की भक्ति आैर सदाचारिता की लगन काे देखकर श्री विष्णु ने उसे वरदान देकर पूजनीय पाैधा 'तुलसी' और गंडकी नदी बना दिया।
गंडकी नदी में पाए जाने वाले विशेष शालिग्राम शिला को साक्षात भगवान विष्णु माना जाता है। यह नदी नेपाल की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। इसे नारायणी नाम से भी जाना जाता है। इसका बहाव मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में प्रवाहित होता है। यह दक्षिण तिब्बत के पहाड़ों से निकलती है तथा सोनपुर और हाजीपुर के मध्य में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है। यह नदी काली नदी और त्रिशूली नदियों के संगम से बनी है। इन नदियों के संगम स्थल से भारतीय सीमा तक नदी को नारायणी के नाम से जाना जाता है।
शालिग्राम पत्थर नर्मदा नदी से प्राप्त होता है। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।
भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गयी। वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।
सालीग्रामा भगवान विष्णु के सम्पूर्ण अवतार मे होता है जैसे येदि सालीग्रामा गोल मे हुवा तो उस सालाग्रामा भगवान विष्णु के नाम गोपाल और कृष्ण शालिग्राम से जाना जाता है ! येदी सालाग्रामा मछली के आकार मे मिला गए तो उसे मत्स्य शालिग्राम कहाँ जाता है! येदि सालाग्रामा कछुवा के आकार मे मिला जाता है तो भगवान विष्णु के कछुवा रुप कुर्म अवतार को जाना जाता है इसलिए ये कुर्म शालिग्राम कछुवा के आकृति से मिल जाता है !
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