Monday, February 15, 2016

मंत्र संग्रह, सभी मन्त्र संग्रह धारण करने की नियम और विधि

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान मृत्योर मुक्षीयमा अमृतात ||
आदौ राम तपोवनादि गमनं , हत्वा मृगम कांचनम वैदेहि हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम भाषणं बाली निर्दलम समुद्र तरणं लंकापुरी दाहनं पश्चात् रावण कुम्भकरण हननम एताधि रामायणं || 

 ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्‌ ॥

देवी मन्त्र 

या देवी सर्वभूतेषु माँ रुपेण संस्थिता |
या देवी सर्वभूतेषु शक्ती रुपेण संस्थिता |
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रुपेण संस्थिता |
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||

श्री हनुमान मंत्र

 मनोजवं मारुततुल्यवेगम् |
जितेन्दि्रयं बुद्धिमतां वरिष्थम् |
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं |
श्री रामदूमं शरण प्रपद्ये ||

श्री लक्ष्मी मंत्र

विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं जगद्धिते |
अर्तिहंत्रि नमस्तुभ्यं समृद्धि कुरु में सदा || 

श्री सूर्य मंत्र

आ कृष्णेन् रजसा वर्तमानो निवेशयत्र अमतं मर्त्य च 
हिरणययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ||

Friday, February 12, 2016

राशि के अनुसार रुद्राक्ष धारण करना, रुद्राक्ष धारण के लाभ व विधि, रुद्राक्ष के लाभ, रुद्राक्ष पहनने के फायदे, रुद्राक्ष धारण विधि

राशि के अनुसार रुद्राक्ष धारण करना
जिन लोगों की जन्म राशि मेष है उनके लिए दस मुखी रुद्राक्ष और सात मुखी रुद्राक्ष भाग्यशाली होता है।
वृष राशि के लिए छह मुखी रुद्राक्ष और सात मुखी रुद्राक्ष को राजयोग का फल प्रदान करने वाला माना गया है।
मिथुन राशि वालों के लिए चार मुखी, पांच मुखी, छह मुखी और सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना फायदेमंद होता है।
जिन लोगों की जन्म राशि कर्क है उनका राशि स्वामी चन्द्रमा है। आपकी राशि के लिए तीन मुखी और पांच मुखी रुद्राक्ष राजयोग कारक होता है।
सिंह राशि के जातकों के लिए एक मुखी, तीन मुखी और छह मुखी रुद्राक्ष राजयोग कारक माना गया है। इससे भाग्य के लाभ में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
कन्या की इस राशि में जन्म लेने वाले लोगों के लिए चारमुखी और छहमुखी रुद्राक्ष राजयोग के समान फल प्रदान करने वाला होता है।
तुला राशि वालों के लिए दो मुखी, सात मुखी और चार मुखी रुद्राक्ष भाग्योदय प्रदान करने वाला होता है।
वृश्चिक राशि के लिए एकमुखी, दोमुखी और तीन मुखी रुद्राक्ष राजयोग कारक होता है। आपको भाग्य का लाभ पाने के लिए यह रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
धनु राशि वालों के लिए चार मुखी, पांच मुखी और एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभप्रद रहता है।
मकर राशि के लिए चारमुखी रुद्राक्ष और छह मुखी रुद्राक्ष राजयोगकारक होता है। आपको अपने भाग्य का सहयोग पाने के लिए इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए।
कुंभ राशि में जिन लोगों का जन्म हुआ है उनके लिए तीन मुखी रुद्राक्ष और छह मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है।
गुरू की राशि मीन वालों के लिए तीन मुखी, चार मुखी और पांच मुखी रुद्राक्ष राजयोग कारक होता है।
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धन की प्राप्ति के उपाय, धन वृद्धि के उपाय, dhan prapti ke upay

शुक्रवार को करें धन प्राप्ति के ये उपाय

1- शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और साधक को मालामाल कर देती हैं।
2- शुक्रवार के दिन शाम के समय घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें साथ ही दीए में थोड़ी सी केसर भी डाल दें।
3- शुक्रवार को पीले कपड़े में पांच लक्ष्मी (पीली) कौड़ी और थोड़ी सी केसर, चांदी के सिक्के के साथ बांधकर धन स्थान पर रखें। कुछ ही दिनों में इसका प्रभाव दिखाई देने लगेगा।
4- इस दिन 3 कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाएं तथा पीला वस्त्र व दक्षिणा देकर विदा करें। इससे भी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
5- शुक्रवार के दिन श्रीयंत्र का गाय के दूध के अभिषेक करें और अभिषेक का जल पूरे घर में छिंटक दें व श्रीयंत्र को कमलगट्टे के साथ धन स्थान पर रख दें। इससे धन लाभ होने लगेगा।
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Tuesday, February 2, 2016

भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह, महाशिवरात्रि की कथा पूजा करने की नियम और विधि

यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण पूजा उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है। 

इसी दिन भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह भी हुआ था। भगवान शंकर के भक्त महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बिल्व-पत्र, बेल फल, बेर, धतूरा, भांग आदि चढ़ाते हैं, पूजन करते हैं, उपवास करते हैं तथा रात्रि को जागरण करते हैं। इस दिन रुद्राभिषेक और जलाभिषेक का भी विशेष महत्व होता है।

महाशिवरात्रि के अवसर पर कई स्थानों पर रात्रि में भगवान शंकर की बारात भी निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपितापरमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का परिचायक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है, जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। कहते हैं इस व्रत को करने मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपजने लगता है।
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शंकर हैं और यह उनकी प्रिय तिथि है। ज्योतिष शास्त्रों में इसे शुभ फलदायी माना गया है और ज्योतिषी महाशिवरात्रि को भगवान शिव की आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। वैसे तो महाशिवरात्रि हर महीने में आती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ माना गया है। भगवान शंकर सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने मात्र से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। ज्योतिष गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। इस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमाका सीधा संबंध मन से कहा गया है। मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेता है तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं और ऐसे में उनकी आराधना करने मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान शंकर आदि-अनादि हैं और सृष्टि के विनाश व पुन: स्थापना के बीच की कड़ी हैं। भगवान शंकर को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने का महत्व है।
एक बार मां पार्वती जी ने भगवान शंकर से पूछा कि ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिसे करने से मृत्युलोक के प्राणी आपको सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? इस पर शंकर जी ने पार्वती जी को महाशिवरात्रि व्रतका विधान बताकर एक कथा सुनाई, जो कि इस प्रकार है। एक गांव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था जिसका ऋण वह समय पर न चुका सका। क्रोधित होकर साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन महाशिवरात्रि थी। शिकारी ध्यान लगाकर भगवान शंकर से संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने महाशिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की।शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से मुक्त हो गया। पुन: वह फिर जंगल में शिकार के लिए निकल पड़ा। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से वह काफी व्याकुलथा। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था, जो बिल्व-पत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्व-पत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भवती मादा हिरण तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, वह बोली कि मैं गर्भवती हूं और शीघ्र ही प्रसव करुंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी और तब तुम मेरे प्राण ले लेना। शिकारीने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मादा हिरण जंगल की झाडि़यों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मादा हिरण उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। यह देखकर उसने शिकारी से निवेदन करते हुए कहा कि मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं और उससे मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका और वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मादा हिरण अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मादा हिरण बोल पड़ी कि मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर लौट आऊंगी और इस समय मुझे मत मारो। इस पर शिकारी हंसकर बोला की सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मादा हिरण ने फिर कहा कि तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी उनकी चिंता है। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदानमांग रही हूं। कृपया मेरा विश्वास करो, मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
यह बात सुनकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई और उसे जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बिल्व-पत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। सुबह होते ही एक हिरण उसी रास्ते पर आ गया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर वह हिरण बोला कि यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों और उनके छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में देरी न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दु:ख न सहना पड़े। उसने बताया कि वह उनका पति है। साथ ही वह बोला कि यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो, मैं भी उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
हिरण की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा हिरण को सुना दी। तब हिरण ने कहा कि ह्यमेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, वे मेरी मृत्यु होने पर अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अत: जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो, मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं। उपवास, रात्रि के जागरण और शिवलिंग पर बिल्व-पत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो चुका था। उसके हाथ से धनुष तथा बाण सहज ही छूट गये। भगवान शंकर की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय करुणामय भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद वह हिरण सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसू गिरने लगे। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा हिरण के परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए। मान्यता है कि इस व्रत को करने वाला मोक्ष प्राप्त करता है।

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महाशिवरात्रि में रुद्राक्ष पहनने से पर विशेष लाभ, रुद्राक्ष धारण करने की नियम और विधि

हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जानेवाला यह महापर्व शिवरात्रि साधकों को इच्छित फल, धन, सौभाग्य, समृद्धि, संतान आरोग्यता देनेवाला है।

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रुद्राक्ष का अर्थ है रुद्र अर्थात शिव की आंख से निकला अक्ष यानी आंसू। रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। उसके अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर संसार के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दु:खी हो गया। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदे गिर गई। 
इन्हीं आंसू की बूदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ। शिवमहापुराण की विद्येश्वरसंहिता में रुद्राक्ष के 14 प्रकार बताए गए हैं। सभी का महत्व धारण करने का मंत्र अलग-अलग है। इन्हें माला के रूप में पहनने से मिलने वाले फल भी भिन्न ही हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इन रुद्राक्षों को महाशिवरात्रि (इस बार दिनांक 07 मार्च 2016 दिन सोमवार) के दिन विधि-विधान से धारण करने से विशेष लाभ मिलता है। जानिए रुद्राक्ष के प्रकार, उन्हें धारण करने के मंत्र तथा होने वाले लाभ के बारें में

1-
एक मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप है। यह भोग और मोक्ष प्रदान करता है। जहां इस रूद्राक्ष की पूजा होती है, वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती अर्थात जो भी इसे धारण करता है वह कभी गरीब नहीं होता।
धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं नम:

2-
दो मुखवाला रुद्राक्ष देवदेवेश्वर कहा गया है। यह संपूर्ण कामनाओं और मनोवांछित फल देने वाला है। जो भी व्यक्ति इस रुद्राक्ष को धारण करता है उसकी हर मुराद पूरी होती है।
धारण करने का मंत्र- ऊँ नम:
3-
तीनमुख वाला रुद्राक्ष सफलता दिलाने वाला होता है। इसके प्रभाव से जीवन में हर कार्य में सफलता मिलती है तथा विद्या प्राप्ति के लिए भी यह रुद्राक्ष बहुत चमत्कारी माना गया है। धारण करने का मंत्र- ऊँ क्लीं नम:

4-
चारमुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्माका स्वरूप है। उसके दर्शन तथा स्पर्श से धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति होती है। धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं नम:

5 -
पांचमुख वाला रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र स्वरूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। इसको पहनने से अद्भुत मानसिक शक्ति का विकास होता है। धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं नम:

6 -
छ: मुखवाला रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने वाला ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। यानी जो भी इस रुद्राक्ष को पहनता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं हुं नम:

7-
सातमुख वाला रुद्राक्ष अनंगस्वरूप और अनंग नाम से प्रसिद्ध है। इसे धारण करने वाला दरिद्र भी राजा बन जाता है। यानी अगर गरीब भी इस रुद्राक्ष विधिपूर्वक पहने तो वह भी धनवान बन सकता है। धारण करने का मंत्र- ऊँ हुं नम:

8 -
आठ मुखवाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरवस्वरूप है। इसे धारण करने वाला मनुष्य पूर्णायु होता है। यानी जो भी अष्टमुखी रुद्राक्ष पहनता है उसकी आयु बढ़ जाती है और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। धारण करने का मंत्र- ऊँ हुं नम:

9 -
नौ मुखवाले रुद्राक्ष को भैरवतथा कपिल-मुनि का प्रतीक माना गया है। भैरव क्रोध के प्रतीक हैं और कपिल मुनि ज्ञान के। यानी नौमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से क्रोध पर नियंत्रण रखा जा सकता है साथ ही ज्ञान की प्राप्ति भी हो सकती है। धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं हुं नम:

10 -
दस मुखवाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का रूप है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं नम:

11 -
ग्यारहमुखवाला रुद्राक्ष रुद्ररूपहै। इसे धारण करने वाला सर्वत्र विजयी होता है। यानी जो इस रुद्राक्ष को पहनता है, किसी भी क्षेत्र में उसकी कभी हार नहीं होती। धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं हुं नम:

12-
बारहमुखवाले रुद्राक्ष को धारण करने पर मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं। यानी उसके जीवन में कभी इज्जत, शोहरत, पैसा या अन्य किसी वस्तु की कोई कमी नहीं होती। धारण करने का मंत्र- ऊँ क्रौं क्षौं रौं नम:

13 -
तेरहमुख वाला रुद्राक्ष विश्वदेवोंका रूप है। इसे धारण कर मनुष्य सौभाग्य और मंगल लाभ प्राप्त करता है। 
धारण करने का मंत्र- ऊँ ह्रीं नम:

14 -
चौदहमुख वाला रुद्राक्ष परम शिवरूप है। इसे धारण करने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है।
धारण करने का मंत्र- ऊँ नम:

शिवमहापुराण के अनुसार रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है-

1-
उत्तमश्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।
2-
मध्यमश्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।
3-
निम्नश्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।

वहीं जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है।
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