Wednesday, January 27, 2016

नीलम रत्न पहनने के लाभ और महत्व, नीलम रत्न धारण करने की विधि

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नीलम शनि ग्रह का मुख्य रत्न है। हिन्दी में नीलम तथा अंग्रेजी में सैफायर कहते हैं। जब हम किसी भी ग्रह के रत्न को धारण करते हैं, तब आकाश मंडल से उन ग्रहों की शुभ किरणें धारण किए हुए रत्न के माध्यम से शरीर में पहुंचती हैं।नीलम शनि का रत्न है. यह नीले , आसमानी और बैंगनी रंग में पाया जाने वाल रत्ना है . अपने देश में कश्मीर और सालेम में पाया जाता है
पहचान: असली नीलम चमकीला, चिकना, मोरपंख के समान वर्ण जैसा, नीली किरणों से युक्त एवं पारदर्शी होगा। मान्यता है कि असली नीलम के संपर्क में आते ही तिनका उससे चिपट जाता है। असली नीलम में सीधी धारियां होती हैं।

ऐसे करें शनि के प्रिय रत्न नीलम की पहचान:
1 असली नीलम को गाय के दूध में डाल दिया जाए तो दूध का रंग नीला लगता है।
2 पानी से भरे कांच के गिलास में डाला जाए तो नीली किरणें दिखाई देंगी।
3 सूर्य की धूप में रखने से नीली किरणें दिखाई देंगी।

शनि में ऐसी प्रबल शक्ति है कि वह राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है। किसी के भाग्य को अचानक बदलने में शनि सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही रूप में सशक्त भूमिका निभाता है। शनि के रत्न नीलम की महिमा का जितना गुणगान किया जाए, कम है।नीलम धारण करने से धन, यश, बुद्धि, कारोबार, नौकरी और वंश में वृद्धि होती है। अस्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ्य मिलता है।

कैसे करें नीलम धारण: शनि से लाभ लेने और उसको संतुलित करने के लिए इसको धारण किया जाता है। शुभ नीलम का प्रभाव चौबीस घण्टे के भीतर दिखना आरंभ हो जाता है।

नीलम शनिवार को पंचधातु, स्टील या चांदी की अंगूठी में शुक्लपक्ष में पूजा पाठ के बाद सूर्यास्त के दो घंटे पहले दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली में पहनना चाहिए। नीलम कम से कम पांच रत्ती का होना चाहिए।

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