Tuesday, January 26, 2016

गोमुखी शंख पूजा करने से लाभ, मंत्र और महत्व, पंच मुखी शंख पूजा करने की नियम और विधि

गोमुखी शंख की उत्पत्ति सतयुग में समुद्र मंथन के समय हुआ। जब 14 प्रकार के अनमोल रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ तब लक्ष्मी के पश्चात् शंखकल्प का जन्म हुआ। उसी क्रम में गोमुखी कामधेनु शंख का जन्म माना गया है। पौराणिक ग्रंथों एवं शंखकल्प संहिता के अनुसार कामधेनु शंख संसार में मनोकामनापूर्ति के लिए ही प्रकट हुआ है।
गोमुखी शंख श्रीलंका और आस्ट्रेलिया के समुद्रों में अधिक होती है। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी शंख के नाम से जाना जाता है। पौराणिक शास्त्रों में इसका नाम कामधेनु गोमुखी शंख है। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला कहा गया है। कलियुग में मानव की मनोकामनापूर्ति का एक मात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। इसका आकार कामधेनु के मुख जैसा है।
साधक यह साधना कर अपार लक्ष्मी प्राप्ति कर सकता है। - शंकराचार्य अपने समय के अद्वितीय विद्वान हैं। उनके गुरु ने कहा शंकर जब तक तुम लक्ष्मी की आराधना और साधना सिद्धि कामधेनु शंख के द्वारा नहीं कर लेते तब तक जीवन में पूर्णता संभव ही नहीं है।
यह लक्ष्मी के साथ-साथ मानव की हर महत्वाकांक्षा पूर्ण करता है। यह शंख सभी शंखों में महान् कहा गया है क्योंकि यह सभी भौतिक एवं पारलौकिक सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। इसलिए प्राचीनकाल में देवी-देवता व ऋषि-महर्षि आयुध के रूप में इसे साथ रखते थे। इसकी महिमा अनुभव से ही सिद्ध हो सकती है। इसका रोजाना दर्शन करने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त होता है।
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