Monday, January 25, 2016

गणेश शंख पूजा करने से लाभ, मंत्र और महत्व, विघ्नहर्ता शंख पूजा करने की नियम और विधि

गणेश शंख / विघ्नहर्ता शंख -
समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ। जिनमें सर्वप्रथम पूजित देव गणेश के आकर के गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ जिसे गणेश शंख कहा जाता है। इसे प्रकृति का चमत्कार कहें या गणेश जी की कृपा की इसकी आकृति और शक्ति हू-ब-हू गणेश जी जैसी है। गणेश शंख प्रकृति का मनुष्य के लिए अनूठा उपहार है। निशित रूप से वे व्यक्ति परम सौभाग्यशाली होते हैं जिनके पास या घर में गणेश शंख का पूजन दर्शन होता है। भगवान गणेश सर्वप्रथम पूजित देवता हैं। इनके अनेक स्वरूपों में यथा- विघ्न नाशक गणेश, दरिद्रतानाशक गणेश, कर्ज़ मुक्तिदाता गणेश, लक्ष्मी विनायक गणेश, बाधा विनाशक गणेश, शत्रुहर्ता गणेश, वास्तु विनायक गणेश, मंगल कार्य गणेश आदि- आदि अनेकों नाम और स्वरुप गणेश जी के जन सामान्य में व्याप्त हैं। गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की विघ्न- बाधा और दरिद्रता दूर होती है। जहाँ दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग केवल और केवल लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। वही श्री गणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है। इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते है। गणेश शंख आसानी से नहीं मिलने के कारण दुर्लभ होता है। सौभाग्य उदय होने पर ही इसकी प्राप्ति होती है। इस भौतिक अर्थ प्रधान प्रतिस्पर्धा के युग में बिना अर्थ सब व्यर्थ है।
आर्थिक, व्यापारिक और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है। अपमानजनक कर्ज़ बाधा इसकी स्थापना से दूर हो जाती है। इस शंख की आकृति भगवान गणपति के सामान है। शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य युक्त है। प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। विधिवत सिद्ध और प्राण प्रतिष्ठित गणेश शंख की स्थापना चमत्कारिक अनुभूति होती ही है। किसी भी बुधवार को प्रातः स्नान आदि से निवृत्ति होकर विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्री गणेश शंख को अपने घर या व्यापार स्थल के पूजा घर में रख कर धूप- दीप पुष्प से संक्षिप्त पूजन करके रखें। ये अपने आप में चैतन्य शंख है। इसकी स्थापना मात्र से ही गणेश कृपा की अनुभूति होने लगाती है। इसके सम्मुख नित्य धूप- दीप जलना ही पर्याप्त है किसी जटिल विधि- विधान से पूजा करने की जरुरत नहीं है। भगवान शंकर रुद्र शंख को बजाते थे। जबकि उन्होंने त्रिपुराशुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था।
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